कोरोना / पहुँचने पर पता चलता है "थोड़ी देर' के लिए नहीं 14 दिन के लिए लाए गए हैं क्वारेंटाइन सेंटर

20 मार्च को पहला कोरोना संक्रमित शहर में मिलने के बाद अब एक महीने से अधिक समय बीत चुका है। संक्रमितों की संख्या 69 हो गई है, वहीं उनके संपर्कों-परिजनों जिनको इंस्टीट्यूशल क्वारेंटीन किए जाने वालों की संख्या भी बढ़ी है। एक महीने का समय बीत चुका है लेकिन पॉजिटिव के काॅन्टेक्ट्स को प्रशासन-स्वास्थ्य विभाग की टीम जाँच के नाम पर कुछ देर के लिए चलने की बात कर 14 दिन के लिए सुखसागर, रेलवे अस्पताल या विक्टोरिया अस्पताल में बनाए गए आइसोलेशन सेंटर में रख रही है। कई तो ऐसे हैं वे जो कपड़े पहने हैं उसके अलावा उनके पास और कुछ नहीं है। ऐसे  में उनका 14 दिन रहना कैसे संभव होगा यह विचारणीय है। यही तस्वीर सोमवार की शाम सुखसागर अस्पताल के आइसोलेशन सेंटर में बनी। वहाँ सरकारी कुआँ-करियापाथर से 18 लोग स्वास्थ्य टीम द्वारा भेजे गए। उन सभी को जाँच के बाद घर छोड़ने का आश्वासन दिया गया था, तो वे जो कपड़े पहने थे उसी में चले आए। सेंटर में जब उन्हें बताया गया कि 14 दिन यहीं रहना है तो कुछेक रोने लगे, उनका कहना था कि कुछ देर की जाँच बताने पर वे पड़ोसी को छोटा बच्चा सौंपकर आए हैं, अब उसकी देखरेख कौन करेगा। एक का कहना था कि घर में माँ अकेली हैं, यदि इतने दिन भर्ती रहने की जानकारी देते तो उनका कुछ इंतजाम करके आता। 
यह समस्या पहले भी थी, लेकिन तब कम केस होने पर इनकी संख्या भी कम थी, लेकिन अब ज्यादा लोग इस अव्यावहारिकता का खामियाजा उठाने को मजबूर हैं। मैदानी टीमों को इस मामले में उन मानवीय पहलुओं को भी ध्यान में रखना चाहिए कि कोरोना पीड़ित या उसके संपर्क वाले कोई अपराधी नहीं हैं। उनको सही जानकारी देकर तैयारी के साथ लाया जाए तो मेडिकल सहित आइसोलेशन सेंटर्स में व्यवस्थाएँ बनी रहेंगी। 


कपड़े रखो, बाकी वहीं मिलेगा मेडिकल काॅलेज के सुपर स्पेशिएलिटी कोविड-19 हॉस्पिटल में भर्ती पॉजिटिव मरीजों के साथ भी अस्पताल प्रशासन ऐसी ही परेशानियों से जूझ रहा है।  सूत्रों के अनुसार यहाँ आए अधिकांश लोगों को कपड़े रखने तथा बाकी सभी जरूरी सामान अस्पताल में ही दिए जाने की बात करके लाया गया। यहाँ भर्ती मरीज स्टाफ से टूथपेस्ट, शेविंग किट, टॉवेल, साबुन, अलग से गिलास आदि जैसी व्यक्तिगत रोजाना उपयोग की वस्तुओं की माँग कर रहे हैं। अस्पताल प्रशासन इससे परेशान है, अधिकारियों का कहना है कि यही सिलसिला चलता रहा तो स्टाफ हतोत्साहित होगा और व्यवस्थाएँ लड़खड़ा जाएँगी।